Shyama Prasad Mukherjee Biography In Hindi ( श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जीवनी )
Shyama Prasad Mukherjee Biography: श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और देश के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता (कोलकाता) में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके दादा गंगा प्रसाद मुखर्जी वेस्ट बंगाल के हुगली जिले में जिरत में जन्मे थे और वे परिवार के पहले शख्स थे जो कोलकाता आए और वहां बस गए।
मुखर्जी कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में शिक्षित हुए। भारत लौटने के बाद, उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में शामिल होकर बिहार और उड़ीसा में जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया। हालांकि, उन्होंने 1929 में आईसीएस से इस्तीफा दे दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) में शामिल हो गए।
नाम (Name) | श्यामा प्रसाद मुखर्जी |
जन्म | 06 जुलाई 1901 |
मृत्यु | 23 जून, 1953 |
जन्म स्थान | कोलकाता, बंगाल, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृह नगर | कोलकाता |
शिक्षा | प्रेसीडेंसी कॉलेज |
धर्म | हिन्दू |
पेशा | राजनेता, वकील |
राजनीतिक पार्टी | भारतीय जनसंघ पार्टी |
श्यामा प्रसाद मुखर्जी राजनीतिक करियर
आईएनसी में, मुखर्जी सुभाष चंद्र बोस द्वारा नेतृत्व की गई उग्र पक्ष के सदस्य थे। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पक्ष में मजबूत आपत्ति रखी और भारत के पूर्ण स्वाधीनता की मांग की। उन्होंने आईएनसी की अहिंसा नीति के खिलाफ भी विरोध किया और यह दावा किया कि देश को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सशस्त्र संघर्ष सहित सभी साधनों का उपयोग करना चाहिए।
मुखर्जी ने अपने राजनीतिक गतिविधियों के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कई बार गिरफ्तार किया गया। उन्हें 1942 के क्विट इंडिया आंदोलन के दौरान भी कारावास में रखा गया। भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, मुखर्जी भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने के जिम्मेदार भारतीय संविधान सभा के सदस्य बने।
भारतीय जनसंघ और जनसंघ के संस्थापक
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरोध में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बनाई गई थी। यह संगठन देशभक्ति, राष्ट्रवाद, और सामरिक सामरिक विचारधारा के समर्थकों का समूह था। स्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के प्रमुख नेता के रूप में देशभर में यात्राएँ की और अपने विचारों को प्रचारित किया। बीजेएस एक हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी थी जो एक मजबूत और एकजुट भारत के पक्ष में थी। मुखर्जी 1953 से 1957 तक बीजेएस के अध्यक्ष रहे।
मुखर्जी एक विवादास्पद व्यक्ति थे, लेकिन वे एक सम्मानित नेता भी थे। उन्होंने हिन्दू अधिकारों के पक्ष में बहुत आवाज उठाई और पाकिस्तान के संतोषजनकीकरण के खिलाफ विरोध किया। उन्होंने नेहरुवादी विकास मॉडल का भी आलोचना की और दावा किया कि भारत को अधिक बाजार-मुख्य प्रवृत्ति को अपनानी चाहिए।
मुखर्जी 23 जून 1953 को कश्मीर में क़ैद में मर गए। उनकी मृत्यु बीजेएस और हिन्दू राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण पटकथा थी। हालांकि, उनका विरासत भारत में कई लोगों को प्रेरित करती है।
शिक्षा और अध्ययन
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कोलकाता में पूरी की, और उन्होंने वहां स्थानीय विद्यालयों से अध्ययन किया। उन्होंने कालेज में एंट्री प्राप्त की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, वे लंदन के किंग्स कॉलेज में जाकर विधि में मास्टर्स की पढ़ाई की।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी परिवार (Family Information)
पिता का नाम (Father’s Name) | आशुतोष मुखर्जी |
माता का नाम (Mother’s Name) | जोगमाया देवी मुखर्जी |
भाई का नाम (Brother’s Name) | उमा प्रसाद और राम प्रसाद मुखर्जी |
बहनों का नाम | कमला, अमला, रामाला |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | सुधा देवी |
बेटों का नाम (Son’s Name) | अनुतोष और देबातोश |
बेटियों का नाम (Daughter’s Name) | सबिता और आरती |
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत जटिल और बहुमुखी है। वे स्वतंत्रता संग्राम, प्रमुख राजनीतिज्ञ और विवादास्पद विचारधारा के महत्वपूर्ण संबंध में प्रमुखता रखते हैं। हालांकि, यह तय है कि वे भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व में से एक हैं।
मुखर्जी की विचारधारा और राजनीतिक योगदान को लेकर अभियांत्रिकी वाले पक्षपाती वाद के आरोपों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने हिन्दू अधिकारों और एकजुट भारत के पक्ष में अपनी बात रखी, जिसे कुछ लोग आपातकालीन वृत्तियों और जातीय उदारवाद के रूप में वर्णित करते हैं।
मुखर्जी के विचारधारा में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ उग्रता थी और उन्होंने भारत की पूर्ण स्वाधीनता की मांग की। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अहिंसा नीति के खिलाफ थे और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता को प्राप्त करने की बात करते थे।
आंदोलन
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का उपमहाद्वेशी आंदोलन, जिसे “भारत छोडो आंदोलन” के नाम से भी जाना जाता है, 1952 में हुआ। उन्होंने कश्मीर में एक उपमहाद्वेशी यात्रा आयोजित की, जिसका उद्देश्य था कश्मीर में एकीकरण के लिए लड़ाई लड़ना। यह आंदोलन भारतीय जनसंघ की उच्चतम सफलताओं में से एक था और इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊंचाईयों तक ले जाया।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु
उनकी मृत्यु कश्मीर में क़ैद में होने के बाद उनके अनुयायों और भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें एक विभाजनवादी और विचारशक्ति के चिन्ह के रूप में प्रशंसा की गई। वे आज भी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त करते हैं और उनकी विचारधारा पर विवाद और चर्चा जारी है।
निष्कर्ष
श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक दिलों के नेता और विचारक थे, जिन्होंने अपने जीवन में देशभक्ति और राष्ट्रवाद को प्रमुखता दी। उनका संघर्ष, उनकी सोच, और उनके योगदान ने देश को गर्व महसूस कराया है और उन्हें सदैव याद रखा जाएगा।
यह भी पढ़ें:-
- सबसे युवा प्रवक्ता राघव चड्ढा जीवन परिचय
- रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जीवन परिचय
- शरद पवार जीवन परिचय
- कौन थें सत्यपाल मालिक?